"निजीकरण" (Privatization)
निजीकरण पर निबंध
परिचय
आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में "निजीकरण" एक अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यापक चर्चा का विषय बन चुका है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें सरकार अपने स्वामित्व वाले उद्यमों, उद्योगों, सेवाओं अथवा संस्थानों का स्वामित्व एवं प्रबंधन निजी क्षेत्र को सौंप देती है। निजीकरण का मुख्य उद्देश्य संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना, कार्यकुशलता बढ़ाना, और आर्थिक विकास को तीव्र गति प्रदान करना होता है। भारत सहित कई देशों में निजीकरण ने आर्थिक परिदृश्य को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निजीकरण की परिभाषा
सरल शब्दों में, निजीकरण का अर्थ है सरकारी संस्थानों या सार्वजनिक उपक्रमों का स्वामित्व, नियंत्रण और प्रबंधन निजी हाथों में सौंपना। जब किसी संस्था का स्वामित्व सरकार के बजाय निजी कंपनियों, व्यक्तियों या संगठनों के पास चला जाता है, तो इसे निजीकरण कहा जाता है। इसका उद्देश्य आर्थिक दक्षता बढ़ाना और प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करना होता है।
भारत में निजीकरण की पृष्ठभूमि
भारत में निजीकरण की प्रक्रिया 1991 में आर्थिक उदारीकरण के साथ प्रारंभ हुई। उस समय देश गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी थी और आर्थिक विकास की गति अत्यंत मंद पड़ चुकी थी। ऐसी स्थिति में, सरकार ने विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के सुझावों के अनुरूप आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, जिसमें निजीकरण एक प्रमुख नीति के रूप में अपनाया गया। इसके तहत कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण किया गया और नए क्षेत्रों में निजी निवेश को बढ़ावा दिया गया।
निजीकरण के उद्देश्य
निजीकरण के कई उद्देश्य होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- कार्यकुशलता में वृद्धि: निजी क्षेत्र लाभ के लिए कार्य करता है, इसलिए वह संसाधनों का अधिकतम उपयोग करता है और कार्यक्षमता बढ़ाने का प्रयास करता है।
- राजस्व में वृद्धि: सरकार निजीकरण के माध्यम से सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री से राजस्व प्राप्त करती है, जिससे राजकोषीय घाटा कम करने में मदद मिलती है।
- प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा: निजी कंपनियों के आगमन से बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, जिससे उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएँ और उत्पाद मिलते हैं।
- नवाचार और तकनीकी उन्नयन: निजी कंपनियाँ नवाचार में विश्वास करती हैं, जिससे नई तकनीकों का विकास और उपयोग होता है।
- सरकारी बोझ में कमी: सरकार का ध्यान नीति निर्माण और प्रशासन पर केंद्रित हो सकता है, जब वह व्यापारिक गतिविधियों से मुक्त हो जाती है।
निजीकरण के लाभ
- बेहतर सेवाएँ: निजी कंपनियाँ ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए उच्च गुणवत्ता की सेवाएँ प्रदान करती हैं।
- रोजगार के अवसर: निजी क्षेत्र के विकास से रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होते हैं।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि: निजीकरण से भारतीय कंपनियाँ वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होती हैं।
- नवाचार को बढ़ावा: निजी कंपनियाँ अनुसंधान एवं विकास पर अधिक खर्च करती हैं, जिससे तकनीकी प्रगति होती है।
- समयबद्ध निर्णय: निजी क्षेत्र में निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज होती है, जिससे योजनाएँ शीघ्र क्रियान्वित होती हैं।
निजीकरण के दुष्प्रभाव या चुनौतियाँ
जहाँ निजीकरण के कई लाभ हैं, वहीं इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं:
- बेरोजगारी की समस्या: निजी कंपनियाँ लागत कम करने के लिए स्वचालन (Automation) को प्राथमिकता देती हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ सकती है।
- सामाजिक असमानता: निजीकरण से लाभ प्रायः कुछ चुनिंदा वर्गों या कंपनियों तक सीमित रह जाता है, जिससे सामाजिक असमानता बढ़ सकती है।
- जनहित की उपेक्षा: निजी कंपनियाँ लाभ के लिए कार्य करती हैं, अतः कभी-कभी जनहित को अनदेख
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