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गुरु की कृपा गुरु की दया

गुरु की कृपा, गुरु की दया
यह वाक्य आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका अर्थ है कि गुरु की कृपा और गुरु की दया से ही शिष्य का जीवन सफल और उन्नत हो सकता है।

कृपा (Grace): गुरु की कृपा वह आशीर्वाद है, जो बिना किसी शर्त के शिष्य को मिलता है और उसे सभी बाधाओं को पार करने की शक्ति देता है।

दया (Compassion): गुरु की दया उनकी करुणा और प्रेम को दर्शाती है, जो शिष्य को सही मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता करती है।

यह वाक्य इस बात को दर्शाता है कि गुरु का स्थान हमारे जीवन में अत्यंत उच्च और पूजनीय है। गुरु की कृपा और दया से ही आत्मज्ञान और मुक्ति संभव है।
 गुरु की कृपा और गुरु की दया का महत्व संतों और शास्त्रों में बार-बार वर्णित है। यह केवल शब्द नहीं, बल्कि एक गहन सत्य है, जो जीवन को सही दिशा में ले जाने और आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

1. गुरु की कृपा:
गुरु की कृपा वह दिव्य शक्ति है, जो शिष्य के जीवन में सभी अज्ञान और अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाती है। कृपा से:

शिष्य को सही ज्ञान प्राप्त होता है।

मन के संदेह और भ्रम दूर हो जाते हैं।

कठिन समय में भी सकारात्मक दृष्टिकोण बना रहता है।

2. गुरु की दया:
गुरु की दया करुणा का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि गुरु बिना किसी स्वार्थ के शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं। दया से:

शिष्य में अनुशासन और समर्पण आता है।

उसे सही और गलत की पहचान होती है।

उसे परमात्मा के करीब पहुंचने का मार्ग मिलता है।

गुरु के बिना जीवन अधूरा है।
जैसा कि संत कबीर ने कहा है:
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।”

गुरु की कृपा और दया से ही व्यक्ति ईश्वर तक पहुंच सकता है। शिष्य को चाहिए कि वह गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास बनाए रखे, क्योंकि गुरु ही सच्चे मार्गदर्शक और रक्षक हैं।

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